खुदाई शुरू हुई तो फिर हरियाणा सरकार ने पंजाब को फिर सहयोग

खुदाई शुरू हुई तो फिर हरियाणा सरकार ने पंजाब को फिर सहयोग

खुदाई शुरू हुई तो फिर हरियाणा सरकार ने पंजाब को फिर सहयोग

एसवाईएल को लेकर एक और इनेलो तो दूसरी और सरकार अड़ी है। न कोई दर्द समझता है और न खतरे को भांप रहा, अगर टूट गई तो तबाही मचाएगी।हरियाणा में एसवाईएल के पानी की आस को तकरीबन चार दशक बीत चुके हैं। 1978 में इस नहर के निर्माण के लिए जमीन अधिग्रहण का नोटिफिकेशन जारी किया गया था। हरियाणा सरकार ने उस वक्त पंजाब को अधिग्रहण कार्य में मदद स्वरूप एक करोड़ का फंड भी दिया था।
उसके बाद नहर की खुदाई शुरू हुई तो फिर हरियाणा सरकार ने पंजाब को फिर सहयोग के लिए दो करोड़ की राशि दी। 8 अप्रैल 1982 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अंबाला-पटियाला बार्डर पर पटियाला के गांव कपूरी में इस एसवाईएल नहर की हरियाणा के हिस्से में खुदवाई की शुरूआत भी की। सन् 1990 तक हरियाणा में अंबाला से लेकर करनाल तक करोड़ों की लागत से नहर को पक्का बनाने का काम पूरा हो चुका था, लेकिन पंजाब में आतंकवाद के दौर की वजह से नहर का निर्माण कार्य नहीं हो पाया।

उसके बाद पंजाब और हरियाणा सरकार के बीच एसवाईएल नहर के पानी को लेकर खींचतान शुरू हुई और 1996 में मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया। अब सुप्रीम कोर्ट इस मामले में पंजाब के रवैये को असंवैधानिक बताते हुए नहर निर्माण के आदेश दे चुका है। मगर उसके बावजूद आज एसवाईएल केपानी को लेकर पंजाब और हरियाणा के बीच खिंची तलवारों पर सियासत तो भी पूरी तरह से हावी है, लेकिन इस नहर का न तो कोई दर्द देख रहा है और न ही इससे जर्जर किनारों का खतरा भांप रहा है। हरियाणा के इलाके में यह नहर बहुत ही ज्यादा जर्जर व खतरनाक बनती जा रही है। पहले भी कई बार तबाही मचा चुकी नहर अब ज्यादा खतरनाक हो चुकी है।
मानसून सिर पर, लेकिन मरम्मत को फंड नहीं

सतलुज यमुना लिंक नहरPC: फाइल फोटो
नहर के किनारे जर्जर होने की वजह से काफी खतरनाक है। हरियाणा में करीब 25 गांवों इस नहर की जद में हैं। वर्ष 2008 और 2009 एसवाईएल के किनारे टूटने से कई गांवों में बाढ़ जैसे हालात बन गए थे, जबकि वर्ष 2004 व 2010 में भी इस नहर के ओवरफ्लो होने पर इलाकों में काफी तबाही मची।

किसानों की फसलें बर्बाद हुईं, पशुधन व घर में रखा पूरे साल का अनाज तक बह गया था। तीन दिन बाढ़ जैसे हालात बने रहे। अब फिर मानूसन सिर पर है। सियासी पारा भी जबरदस्त चढ़ा हुआ है, लेकिन इसकी मरम्मत केलिए न तो पंजाब के पास फंड है और न ही हरियाणा के पास। इस नहर की मरम्मत के लिए दोनों ही राज्य बेबस दिखाई दे रहे हैं।

नहर में पनप चुका घना जंगल

पटियाला में सिलेंटर फटने से 5 घायलPC: amar ujala

214 किमी लंबी यह नहर हरियाणा के हिस्से में 92 किमी तक पक्की की गई थी, जो आज विवादों में फंसकर जर्जर हो चुकी है। राजपुरा के घग्गर सराय तक यह नहर (मोरिंडा, फतेहगढ़, सरहिंद, रोपड़, पटियाला एरिया) 122 किमी पंजाब के हिस्से में है, लेकिन यहां नहर पक्की नहीं है और न ही इसकी सुध ली गई है।घना जंगल इस नहर में पनप चुका है और कई जगह इसके किनारे बुरी तरह से दरक रहे हैं, जो अत्यधिक बारिश में बड़ा खतरा बन सकते हैं।

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