दस साल की बच्ची 30 हफ्ते की गर्भवती है। अब सुप्रीमकोर्ट ने पीजीआई से राय मांगी

दस साल की बच्ची 30 हफ्ते की गर्भवती है। अब सुप्रीमकोर्ट ने पीजीआई से राय मांगी

दस साल की बच्ची 30 हफ्ते की गर्भवती है। अब सुप्रीमकोर्ट ने पीजीआई से राय मांगी

दस साल की बच्ची 30 हफ्ते की गर्भवती है। अब सुप्रीमकोर्ट ने पीजीआई से राय मांगी है कि इस स्थिति में गर्भपात करना सुरक्षित है या नहीं। संभवत: पीजीआई दो दिन में अपनी रिपोर्ट सौंप देगी। हालांकि पीजीआई के गाइनेकोलाजिस्ट ने बताया कि बच्ची का अब गर्भपात नहीं हो सकता।
24 हफ्ते बाद भ्रूण प्रीमिच्योर बच्चे का रूप लेता है। प्रीमिच्योर बच्चे को जीने का अधिकार है। उसे ऐसे नहीं छोड़ा जा सकता। प्रीमिच्योर का मतलब उसके जीवन पर कई गंभीर खतरे हैं। जन्म लेने के बाद उसे न्यूबोर्न एंड इंफेंट क्रिटिकल केयर यूनिट (नीकू) में रखना होगा। जिसका खर्चा बहुत ज्यादा होता है। मध्यवर्गीय परिवार के लिए ये काफी मुश्किल है।

दूसरी सबसे गंभीर बात यह है कि प्रीमिच्योर बच्चे की जिम्मेदारी कौन संभालेगा? न तो परिजन जिम्मेदारी उठाने को तैयार होंगे और न ही कोई दूसरा। कड़वी सच्चाई यह है कि एक स्वस्थ बच्चे को तो लोग अपना सकते हैं, लेकिन प्रीमिच्योर बच्चे के लिए कोई सामने नहीं आएगा।
स्वस्थ्य प्रेग्नेंट के मुकाबले दस साल की बच्ची में दोगुने खतरे

स्वस्थ्य प्रेग्नेंट के मुकाबले दस साल की बच्ची में दोगुने खतरे
पीजीआई के गाइनेकोलाजिस्ट मानते हैं कि दस साल की बच्ची के लिए नार्मल डिलीवरी भी संभव नहीं है। एक स्वस्थ प्रेग्नेंट महिला को डिलीवरी के दौरान जितने खतरे होते हैं, उससे कहीं ज्यादा खतरे दस साल की बच्ची को हैं।

एक आंकड़े के मुताबिक भारत में बच्चे को जन्म देते वक्त हर साल 40 हजार से ज्यादा महिलाओं की मौत होती है। यह खतरा उस समय और बढ़ जाता है जब बच्चे को जन्म देने वाली मां की उम्र मात्र दस साल हो।

डिलीवरी के वक्त बच्चे को आगे बढ़ाने के लिए बच्ची के पैल्विक (पेडू) हड्डियां मजबूत नहीं होती है। बच्ची के हार्मोन विकसित न होने के कारण इस उम्र में लेबर पेन नहीं होता। इस हिसाब से सीजेरियन कराना ही सबसे सुरक्षित विकल्प है।

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