13 घंटे सर्जरी के बाद हुआ था लंग्स ट्रांसप्लांट

13 घंटे सर्जरी के बाद हुआ था लंग्स ट्रांसप्लांट

13 घंटे सर्जरी के बाद हुआ था लंग्स ट्रांसप्लांट

पीजीआई का पहला लंग्स (फेफड़ा) ट्रांसप्लांट सफल नहीं रहा। ट्रांसप्लांट के 14 वें दिन महिला की मौत हो गई। बीते 11 जुलाई को संगरूर जिले की 34 वर्षीय महिला में 22 साल के युवक का फेफड़ा ट्रांसप्लांट किया गया था।
एक हादसे में घायल युवक के अंग पीजीआई को डोनेट किए गए थे। इसी युवक का फेफड़ा महिला को लगाया गया था। पीजीआई के डॉक्टरों ने बताया कि महिला का बीपी कंट्रोल नहीं हुआ। लगातार रक्तस्राव जारी था। बीपी कंट्रोल करने के लिए महिला को एक्मो मशीन में रखा गया लेकिन वह जिंदगी की जंग जीत नहीं पाई।

ट्रांसप्लांट के बाद महिला ठीक हो रही थी
फेफड़ा ट्रांसप्लांट के बाद महिला के स्वास्थ्य में सुधार आ रहा था। ट्रांसप्लांट के अगले ही दिन उसे होश आ गया था। परिजनों को उससे मिलने की अनुमति दे दी गई थी। महिला ने खाना-पीना भी शुरू कर दिया था। लेकिन करीब हफ्ते भर पहले उसे इंफेक्शन होना शुरू हो गया। इससे उसकी हालत बिगड़ने लगी। इंफेक्शन को कंट्रोल भी किया गया, लेकिन उसके बाद स्वास्थ्य में गिरावट आना शुरू हो गई।
13 घंटे सर्जरी के बाद हुआ था लंग्स ट्रांसप्लांट

पीजीआई का पहला लंग्स ट्रांसप्लांट हुआ असफल
13 घंटे सर्जरी के बाद हुआ था लंग्स ट्रांसप्लांट
महिला की मौत से ट्रांसप्लांट करने वाली टीम काफी निराश है। सर्जरी में करीब 13 घंटे का समय लगा था। पीजीआई साल 2013 से लंग्स ट्रांसप्लांट की तैयारी कर रहा था। चार साल बाद उसे चांस मिला, लेकिन मरीज सरवाइव नहीं कर पाया।

ट्रांसप्लांट के बाद भी रहता है खतरा
पीजीआई के डॉक्टरों ने बताया था कि ट्रांसप्लांट के बाद भी खतरा रहता है। यह मरीज और उसकी देखभाल पर निर्भर करता है कि वह कितने समय तक जीवित रहता है। डॉक्टरों के मुताबिक ट्रांसप्लांट के बाद 50 फीसदी मरीज पांच साल तक जीवित रहते हैं, जबकि 50 प्रतिशत पांच साल से भी कम साल तक। ट्रांसप्लांट से मरीज की जिंदगी बेहतर होती है। वरना फेफड़ा खराब होने पर आक्सीजन पर ही उसे जिंदा रखना पड़ता है।

ट्रांसप्लांट से पहले महिला का पांच फीसदी फेेफड़ा काम कर रहा था
संगरूर की रहने वाली महिला के फेफड़े सिर्फ पांच प्रतिशत ही काम कर रहे थे। उसकी जिंदगी आक्सीजन के सहारे ही चल रही थी। दो साल पहले उसे इन्टर्स्टिशल लंग्स डिजीज आईएलडी से पीड़ित हो गई थी। उसके कुछ समय बाद फेफड़ों ने काम करना बंद कर दिया। सांस देने के लिए आक्सीजन के सिलेंडर लगाए गए। एक महीने तक वह पीजीआई की इमरजेंसी में एडमिट रही।

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